I believe in the imagination. What I cannot see is infinitely more important than what I can see.

Tuesday, July 1, 2008

क्यों

लोग हर मोड़ पे रुक रुक के संभलते क्यों हैं.
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं.
मैं न जुगनू हूँ दिया हूँ न कोई तारा हूँ
रौशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यूँ हैं .
नींद से मेरा ताल्लुक ही नहीं बरसों से
ख्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यों हैं
मोड़ होता है जवानी का संभलने के लिए
और सब लोग यहीं आके फिसलते क्यों हैं.

3 comments:

Advocate Rashmi saurana said...

bhut khub. jari rhe.

RANA RANJAN said...

SHAYAD YAH DUNIYA KI SABASE BADA SAWAL HAI...

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

jiski rachnaa hai....uskaa naam dena hi acchi baat hoti hai...!!

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