I believe in the imagination. What I cannot see is infinitely more important than what I can see.

Sunday, August 24, 2008

दिल चाहे कोई ऐसा

दिल चाहे कोई ऐसा
हो मेरा, मेरे अपनों जैसा
गले लग कर जिसके
मैं रो सकूँ
बाँहों के झूले में जिसके
सुकून कि नींद मैं सो सकूं
एक पल , एक क्षण
जब तुम थे मेरे पास
पाया है मैंने ये एहसास
मगर अब चाहत और बढ़ गयी है
तुम्हे पाने की तृष्णा और चढ़ गयी है
वह तुम्ही हो क्या
जो मेरे सपनो में आते हो
और कभी कभी हकीकत में आ कर
अपने सच होने का अहसास कराते हो
फिर भी दिल ये क्यों जान नहीं पाता
वो तुम ही हो ये मान नहीं पाता
कोई तो तरीका बतलाओ मुझे
ये तुम ही हो ये जतलाओ मुझे
बिना कुछ कहे सब समझ जाऊँ
ऐसा हरदम हो नहीं सकता
कब कहोगे तुम कुछ ऐसा
जो होगा मेरा, मेरा अपनों जैसा ...
(साहित्यिका)

4 comments:

Dheerendra said...

apki sapno ki duniya main aana ek sukhad anubhav raha...
accha laga padhkar..

सुधीर राघव said...

aapki ye dunia kafi romanchak hai. yahan aakar achcha laga.
sudhir raghav

Anonymous said...

very well

maverick said...

bahut khoob likha he ... nice write

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