I believe in the imagination. What I cannot see is infinitely more important than what I can see.

Tuesday, February 17, 2009

यादें

बहुत कष्ट देती है यादें
कभी हसती कभी रुलाती है यादें
तुम्हारे ना होने का एहसास कराती है यादें
पर तुम हो कौन, एक अपरिचित
या एक चिर परिचित
या दोनों ही नहीं
सिर्फ मेरे मन के भावों का एक रूप हो
मेरे सपनो में बसे एक स्वरुप हो
इस रूप को स्वरुप को मिटटी के सांचे में कैसे ढलूँ
तुम्हे खोज कर तुम्हे पा कर किस तरह अपना बना लूँ
पर मन में मेरे इतना अंतर्द्वंद क्यों है
अपने ही भावों अपने ही विचारो में इतना संघर्ष क्यों है
अपनी ही भावनाएं झूठ लगने लगती हैं
अपनी ही कामनाएं झूठ लगने लगती हैं
जब शंका स्वयं पर होती है
तुम क्या जानो कितना कष्ट होता है
और जीवन मेरा पथ भ्रष्ट होता है
फिर भी ये यादें आती हैं
कभी आंसू कभी मुस्कान लगती हैं
और तुम्हारे ना होने का अहसास कराती हैं

3 comments:

Anonymous said...

yaade bahut yaad aati hai chahe acchi ho ya buri

अमिताभ श्रीवास्तव said...

अतिसुन्दर ,
"तुम क्या जानो कितना कष्ट होता है
और जीवन मेरा पथ भ्रष्ट होता है"
इन दो पंक्तियों ने बहुत कुछ कह दिया .
कभी कभी तो यह लगता है मानो यादे ख़ुद एक जिन्दगी है.
लिखती रहिएगा...शुभकामनाये .

हरकीरत ' हीर' said...

Sahityika bhot sunder likha aapne...!!

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