जो बीत गया, जो छूट गया
वो लम्हे वो जज्बात कँहा से लायें
अब हम बदले और सब बदले
तो इन बातों में मिठास कँहा से लाएँ?
अर्थ का अनर्थ कैसे हो जाता है
एक शब्द बदलने से पूरा वाकया बदल जाता है
छूट गया जो तीर
क्या लौट कर कभी वो आता है?
इसीलिए तो वाणी पर संयम रखा जाता है
बोलने से पहले सोचा समझा जाता है
और जो इसे नही अपनाता है
वह जरुर नज़रो से गिर जाता है।
4 comments:
zindgi ki khaas sachchaayiyoN ko
aapne bahut hi khoobsurat alfaaz
mein dhaala hai....
badhaaee .
---MUFLIS---
great word in simplicity.....sach kaha aapne
जो बीत गया, जो छूट गया
वो लम्हे वो जज्बात कँहा से......
Ye do panktiyan bahut hi achchhi ban padi hain.
achchha laga aapke blog par aakar.
Navnit Nirav
u r right sahityika i hv xperienced this thing
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