I believe in the imagination. What I cannot see is infinitely more important than what I can see.

Thursday, May 14, 2009

अनजान मुलाकात part-2

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जब ट्रेन चलने लगी तो मैंने एक व्यक्ति से बात करके उपर वाली सीट ले ली। उपर जा कर मैंने सामन व्यवस्थित किया और ओड़ने के लिए चादर निकली। तब मैंने देखा कि वह अब भी फ़ोन पर बातें कर रहा था। तब मुझे पक्का यकीन हो गया कि वह किसी लड़की से बातें कर रहा था। क्योंकि मैं अकेली थी और बोर हो रही थी तो सोचा क्यों ना उसकी बातें ही सुनू। ट्रेन कि शोर कि वजह से बहुत कम सुनाई पड़ रहा था। जब कभी ट्रेन धीमी होती मैं तभी कुछ सुन पाती थी। वह अपनी साइड लोअर बर्थ पर इस तरह लेटा था कि मेरी सीट उसे साफ़ दिखाई दे रही होगी। मेरी सीट से भी उसका चेहरा व उसकी सीट दिखाई दे रही थी। लेकिन लाइट बंद होने के बाद मैं उसे नही देख सकती थी। लेकिन वह मुझे देख सकता था क्योकि मेरी सीट के सामने लगा नाईट लैंप जल रहा था।

कुछ देर बाद मैंने अपने एक दोस्त को फ़ोन लगाया। पहले तो फ़ोन लगा नही और जब लगा उसने उठाया नही। बाद में उसका फ़ोन आया था। मैंने उसे अपने इंटरव्यू के बारे में बताया और दिल्ली ट्रिप के बारे में बता रही थी कि अचानक नेटवर्क चले जाने से फ़ोन कट गया। थोडी देर बाद जब नेटवर्क आया और मैंने फ़ोन किया था उसका फ़ोन व्यस्त था। मैंने फिर उस लड़के की और ध्यान दिया वो अब भी बातें कर रहा था। कह रहा था- "तुम जानती हो पीने की आदत मुझे बिल्कुल नही है। बस कभी कभी पी लेता हूँ। सच कह रहा हूँ छोड़ दूंगा। लेकिन स्मोकिंग छोड़ना बहुत कठिन है। लेकिन मैं कोशिश कर सकता हूँ।"

मैं अपनी सीट पर बैठी हुयी उसकी बातें सुन रही थी। ये बातें सुन कर मेरे मन में ख्याल आया " कोई इतना एक जैसा कैसे हो सकता है। वही बातें और बातें करने का अंदाज भी वही। क्या लखनऊ के सारे लोग एक जैसी ही बातें करते हैं या सारे लड़के ही एक जैसे बातें करते हैं।" मेरा मन फिर हुआ कि मैं पूछूं " क्या आप लखनऊ से हो ?" मैं फिर कुछ पुरानी बातें सोचने लगी और उन्हें सोचते सोचते आंखों में आंसू आ गए। ट्रेन का शोर बढ़ गया था। 12 बज रहे थे। मुझे नींद आने लगी और मैं सो गई।

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4 comments:

Sam said...

train ka safar aksar ajeeb hota hai. kuch pal ke kuch aise anjaan logo ke saath humara uthna baithna hota hai ke kabhi kabhi woh bohot hi jaane pehchane se maloom hote hai. halaki, is baat sab ko ilm hota hai ke, saath bas is safar tak ka hai, par us kuch ghanto mein hi aap aksar ek rishta kaayam kar jaate hai. ajeeb hote hai yeh rishtey, kabhi bhi kahi bhi ban jaate hai!!

PS: meri ek bohot achhi dost se mein train mein hi mila tha pehli baar!! :D
ab sochiye ke yeh safar kitne ajeeb hote hai... :)

SAHITYIKA said...

@ sumit
ji ye to bilkul sahi hai.. mujhe bhi meri ek achchi frnd train me hi mili thi. kisi ka yu itna jana pehchana lagna.. ye mere liye ek naya taraf ka experience tha.. n i hope that u will like the last part of its too... :)

keep visiting..

Anonymous said...

hmmmm interesting
but is part me aur likhna tha

अलीम आज़मी said...

ur really fantastic and mind blowing wrtiter ...every post urs touches me deeply heart...ur thoughts of every post maintain proper balance of each lines of sentence....so at last keep it up ....i really happy to visit urs blogss....i wish to visit my blogs too...if there is possible...

god bless u

aleem azmi

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